Latest News:राष्ट्रीय हिंदू संगठन में आपका स्वागत है
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संस्थापक-राष्ट्रीय हिन्दू संगठन

हमारी यात्रा

उपरोक्त परिकल्पना को साकार रूप प्रदान करने हेतु दिनांक 30 भाद्रपद विक्कम सर्वत 2070 एकादसी (30 सितंबर 2013) को संगठन के वर्तमान राष्ट्रीय आध्यक्ष श्रीमंत सतेंद्र दुवे ‘सत्या’ जी द्वारा अपने विद्यार्थी काल के कतिपय समान विचारधारा के मित्रे के साथ प्रयागराज में सर्वस्व बलिदानी श्री चंद्रशेखर आजाद जी के बलिदान स्थाल अल्फ्फ्रेड पार्क में उनकी प्रतिमा के समक्ष राष्ट्रोत्थान , धर्मोत्थोन एवं हिन्दू राष्ट्र स्थापना की अटल प्रतिज्ञा लेते हुए राष्ट्रीय हिन्दू संगठन की संकल्पना को मूर्तरूप प्रदान किया तथा तब से लेकर आज तक चंद्रशेखर आजाद जी के आदर्शो का पूर्ण पालन करते हुए अपना सब कुछ त्याग और समर्पित होकर पुनीत कार्य में देश के 100 करोड़ हिंदुओं के परिवार निर्माण में अडिग होकर डटे हुए हैं।राष्ट्रीय हिन्दू संगठन एक महत्वपूर्ण संगठन है जो हिन्दू धर्म, संस्कृति और समुदाय के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। संगठन का लक्ष्य हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना है और यह धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है।

संगठन की नौ सूत्रीय मांगें

(1) भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित किया जाए।
(2) सम्पूर्ण भारत वर्ष में गुरुकुल स्थापित किया जाए।
(3) काशी एवं मथुरा में भव्य मंदिर निर्माण कराया जाए।
(4) सम्पूर्ण भारत में जनसंख्या नियंत्रण कराया जाए।
(5) धर्मांतरण एवं लव जिहाद पर कठोरतम कानून लागू किया जाए।
(6) कॉमन सिविल कोड लागू किया जाए।
(7) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 को रद्द किया जाए।
(8) भारत सरकार बहुसंख्यक कल्याण बोर्ड गठन करे।
(9) सम्पूर्ण भारत वर्ष के मदरसों पर प्रतिबधं लगाया जाए।
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हमारे प्रेरणास्त्रोत

स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद (12 जनवरी 1863 – 4 जुलाई 1902) भारत के महान विचारक, आध्यात्मिक गुरु और समाज सुधारक थे। उनका जन्म कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस थे, जिन्होंने उन्हें आत्मबोध और दिव्यता की दिशा में प्रेरित किया।।

विचार और शिक्षाएँ: स्वामी विवेकानंद ने अद्वैत वेदांत और योग के सिद्धांतों का प्रचार किया। उन्होंने समाज में गरीबों और उपेक्षितों की सेवा को ईश्वर की सेवा माना और "दरिद्र नारायण" की अवधारणा दी। उनके अनुसार, हर व्यक्ति में दिव्यता विद्यमान है और शिक्षा का उद्देश्य इस दिव्यता का जागरण है।।

ऐसे परिवार के निर्माण हेतु संगठन एक दसक से अधिक समय से भारत के विभिन्न प्रांतों में लगभग 350 जनपदों में साप्ताहिक हिंदू समागमो का आयोजन करता है जहाँ हिन्दू एक दूसरे के साथ जुड़ता है और इन्ही समागमों में एक दूसरे के लिए सुख दुःख में भागीदार बनने की भावना भी जागृत हो रही है जिसके परिणाम स्वरूप आज यह संकल्पना धरातल पा चरितार्थ भी ही रही है। प्रमुख उद्धरण
स्वामी विवेकानंद के कई प्रेरणादायक उद्धरण हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
"उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।"
"एक विचार लो, उस विचार को अपना जीवन बना लो – उसके बारे में सोचो, उसका सपना देखो, उस विचार को जियो।"
"आप जो भी सोचेंगे, वही आप बनेंगे। अगर आप खुद को कमजोर मानते हैं, तो आप कमजोर बन जाएंगे। अगर आप खुद को ताकतवर मानते हैं, तो आप ताकतवर बन जाएंगे।"

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चंद्रशेखर आज़ाद:

चंद्रशेखर आज़ाद: (23 जुलाई 1906 – 27 फरवरी 1931) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी और वीर योद्धा थे। उनका जन्म मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी और माता का नाम जगरानी देवी था। बचपन से ही आज़ाद में देशभक्ति की भावना थी, और उन्होंने कम उम्र में ही अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करने की ठान ली थी।.
चंद्रशेखर आज़ाद का असली नाम चंद्रशेखर तिवारी था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही पूरी की और बाद में वाराणसी जाकर संस्कृत विद्यालय में अध्ययन किया। बनारस में रहते हुए, उनका संपर्क क्रांतिकारी गतिविधियों से हुआ और वे महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित हुए।
बलिदान: 27 फरवरी 1931 को, जब वे इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अपने साथी सुखदेव राज से मिलने गए थे, तब अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया। काफी संघर्ष के बाद, जब उनके पास आखिरी गोली बची, तो उन्होंने खुद को गोली मार ली ताकि वे अंग्रेजों के हाथ न लगें। इस तरह वे अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार "आज़ाद" ही रहे।
विरासत: चंद्रशेखर आज़ाद का बलिदान और उनकी वीरता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक प्रेरणास्त्रोत के रूप में जीवित है। आज भी उनके बलिदान को याद कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष और उनके द्वारा दिखाए गए साहस और समर्पण की सराहना की जाती है। उनके नाम पर कई स्मारक और संस्थाएँ स्थापित की गई हैं जो उनकी वीरता की गाथा को जीवित रखते हैं।



संगठन के प्रमुख उद्देश

संगठन का मूल अवधारणा

जहां भारत में एक तरफ हिंदुओं को बहुसंखयक के रूप में गिना जाता है बड़ी दूसरी तरफ हिंदुओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार के खिलाफ हिंदुओं का मुखर ना होगा कहीं ना कही या स्पष्ट करता है कि हिन्दू वैचारिक रूप से कही ना कही एक दूसरे से सहमत नहीं है यही कारण की आज देश में 20% की आबादी वाला समुदाय राजनीतिका केन्द्र विन्दु बना हुआ है। वहीं 80% आबादी वाला समुदाय अपने ही देश अपनी अस्तित्व को लेकर असहज मह्सूस कर रहा है।

राष्ट्रीय हिन्दू संगठन अपनी मूल अवधारणा से हिन्दू को हिन्दू से भावनात्यक रुप से जोड्ने का कार्य कर रहा है संगठन का मानना है हिन्दू एक दूसरे के लिए आगे तब तक नहीं आए‌गा जब तक हिन्दू एक दूसरे के साथ भावनात्मक संबंध स्थापित नहीं करता। संगठन का संकल्प हैकि भारत के 100 करोड़ हिंदुओं का विशाल परिवार स्थापित करना, जिस परिवार में एक दूसरे के लिए मन में भावना व वेदना हो प्रत्येक हिन्दू अपने धर्म संस्कृति के प्रति जागरूक हों।

ऐसे परिवार के निर्माण हेतु संगठन एक दसक से अधिक समय से भारत के विभिन्न प्रांतों में लगभग 350 जनपदों में साप्ताहिक हिंदू समागमो का आयोजन करता है जहाँ हिन्दू एक दूसरे के साथ जुड़ता है और इन्ही समागमों में एक दूसरे के लिए सुख दुःख में भागीदार बनने की भावना भी जागृत हो रही है जिसके परिणाम स्वरूप आज यह संकल्पना धरातल पा चरितार्थ भी ही रही है।
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